कुरूक्षेत्र भूमि में स्थित सात वनों एवं नौ नदियों का स्पष्ट नामोल्लेख मिलता है।
श्रृणु सप्त वनानीह कुरूक्षेत्रस्य मध्यतः।
येषां नामानि पुण्यानि सर्वपापहराणि च।।
काम्यकं च वनं पुण्यं दितिवनं महत्।
व्यासस्य च वनं पुण्यं फलकीवनमेव च ।।
तथा सूर्यवनस्थानं तथा मधुवनं महत्।
पुण्यं शीतवनं नाम सर्वकल्मषनाशनम् ।।
(वामन पुराण-34/3-5)
अर्थात् ‘‘कुरूक्षेत्र के मध्य में स्थित सात वनों के बारे में सुनो, जिन पुण्यशाली वनों के नाम का उच्चारण करते ही मनुष्य के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। यहां पुण्यदायक काम्यक वन, महान अदिति वन और व्यास वन व पुण्यशाली फलकीवन है , उसी प्रकार सूर्यवन और महान मधुवन तथा सभी प्रकार के क्लेशों को नष्ट करने वाला शीतवन स्थित है। ’’ नौ नदियों के बारे में लिखा गया है -
वनान्येतानि वै सप्त नदीः श्रृणुत मे द्विजाः।
सरस्वती नदी पुण्या तथा वैतरणी नदी।।
आपगा च महापुण्या गंगा मंदाकिनी नदी।
मधुस्रवा वासुनदी कौषिकी पापनाशिनी।।
दृषद्वती महापुण्या तथा हिरण्यवती।
वर्षाकालवहाः सर्वां वर्जयित्वा सरस्वतीम्।।
(वामन पुराण-34/6-8)
अर्थात् ‘‘इन सात वनों के बाद अब मुझसे नदियों के नाम सुनो, पुण्यशाली सरस्वती नदी, वैतरणी, महानपुण्यप्रदा आपगा, मंदाकिनी गंगा, मधुस्रवा, वासुनदी और पापनाशिनी कौशिकी तथा महापुण्या दृषद्वती व हिरण्यवती हैं। सरस्वती के अतिरिक्त शेष सभी नदियां वर्षाकाल में ही बहती हैं। ’’